Friday, February 5, 2010

तुमसे दूर होके

मोहब्बत कितनी है तुमसे, कभी दिखा नही पाए,
जब दूर हुए तुमसे, तो छुपा नहीं पाए|
सोचा था रह सकते हैं तुम्हारे बिन भी हम,
लेकिन जब दूर हुए तो हमारी आँखें हुई नम|

सब कुछ तो है, तुम्हारे बगैर भी जीने में,
फिर क्यूँ लगता है की साँस कम हो गयी है सीने में|
जिस कंधे पर सर रखकर सारे गम भूल जाऊं,
मखमल की बिस्तर से प्यारी वो गोद कहाँ से लाऊँ|

तेरी दीदार को अब मेरी आँखें तरस गयीं,
बिन सावन, आँखों से घटा बरस गयी|
अब हर पल रहती है बस तेरे दीदार की ललक,
पर जानता हूँ कि नहीं पा सकता, तेरी एक भी झलक|

पी कर भुलाना चाहता हूँ गम-ए-तन्हाई,
पर आग से आग कब है बुझ पाई?
तेरे बिन ज़िंदगी अब हो गयी है सूनी,
अब आजा कि बहुत लंबी होने लगी है ये जुदाई|

5 comments:

  1. Tumne to meri beetein dino ki yaad dila di.

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  2. Sahi Hai Bhaiya, Mast kavita likh lete ho aur bahut dard bhara hua hai kavita me.Tension mat lo zald hi ye judai door ho jayegi.

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  3. Now that was a great creation wo bhi direct dil se. Bhai hats-off to you.

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  4. Poem is best way to express our feelings. You are lucky to have this talent.

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